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रहस्यमाई चश्मा भाग - 34




आपके गुरुओं का आशीर्वाद एव इस कॉलेज कि सद्भावनाए संस्कार सदैव तुम्हारे साथ शक्ति बनकर प्रेरणा का प्रकाश प्रदान करते रहेंगे। मंगलम जब चलने लगा तब प्रिंसिपल साहब बोले मंगलम तुम शुभा को भी साथ लेकर जाओ और उसके घर छोड़ते हुए चले जाना,,,,

 मंगलम को तो जैसे मनचाही मुराद ही मिल गयी हो बोला यस सर और शुभा की तरफ मुखातिब होते हुए बोला चलिये शुभा मंगलम के साथ चल पड़ी दोनों ने कॉलेज के बाहर आकर टांगे पर बैठ गए अशरफ मियां ने टांगा हांक दिया शुभा और मंगलम दोनों के पास उस दौर कि सभी शुख सुविधाएं थी किंतु लेकिन मंगलम भी कॉलेज एक साधरण विद्यार्थी कि तरह कॉलेज आता था और शुभा भी दोनों टांगे पर बैठे सोच विचार में डूबे ही थे मंगलम ने खामोशी तोड़ते हुए बोला शुभा जी आज के दौर में लडकिया चूल्हे चौका रसोई सिलाई बुनाई आदि को ही अपने जीवन के लिए असली ज्ञान मानती है ऐसे में आपका कॉलेज तक लड़को कि बाहुलता में आना कुछ अटपटा नही लगता है शुभा के बोलने से पहले ही अशरफ कोचवान बोल पड़े मॉलिक लड़कियों के लिए नजीर है,,,,

 यह लड़की शुभा ने कहा शिक्षा ही असली शक्ति है जो जीवन कि किसी भी स्थिति परिस्थिति में व्यक्ति को टूटने और विखरने से बचाती है तो पढ़ने लिखने में अटपटा क्या ? मंगलम को विश्वास हो गया कि शुभा कोई साधारण लड़की नही है ईश्वर की कृपा से बड़े घर मे जन्म तो लिया ही है इसके विचार व्यवहार भी बहुत सांस्कारिक एव स्प्ष्ट है शुभा ने मंगलम से प्रश्न किया आप अब क्या करना चाहते है सुना है आपके पिता बहुत बड़े आदमी है,,,,,

चटगाँव और शेर पुर ही नही पूरे इलाकें में उनके धन दौलत एव उदारता के चर्चे सुनने को मिलते रहते है मंगलम ने कहा अब मैं लंदन भविष्य कि शिक्षा दीक्षा के लिये जाँऊगा मेरे पिता कि चाहत है कि इधर से कारोबार समेट कर अपने क्षेत्र मिथिलांचल में ही कारोबार स्थापित किया जाय अंग्रेजो को विश्वास हो चुका है कि बहुत दिन तक उनका रहना भारत मे रहना अब सम्भव नही है अतः औने पौने दाम अपने वर्षो से स्थापित करोबार को बेच कर ब्रिटेन लौट रहे है हमारे पिता भी यहां से अपने कारोबार को समेट रहे है और कलकत्ता एव मिथिलांचल बिहार नेपाल उत्तर प्रदेश आदि में नए उद्योग फार्म हाउस आदि जो भी ब्रिटिश बेच रहे है,,,,

उन्हें खरीद कर अपने अनुसार स्थापित कर रहे है पिता जी का मानना है कि भारत की आजादी के बाद यहाँ हम लोंगो का कोई भविष्य नही है पता नही मेरे पिता कौन सी गणना और भविष्य देख रहे है शुभा ने कहा मेरे पिता तो दादा जी से किसी बात पर नाराज होकर घर छोड़ दिया और चौदह पंद्रह वर्ष कि अवस्था मे ही भटकते हुए पता नही कैसे यहां पहुंच गए भूख प्यास और दुनियां भर के थपेड़ों से आहत बेहाल रेलवे प्लेटफॉर्म पर पड़े थे,,,,,

 तब रेलवे के मुलाजिम कासिम ने उन्हें देखा वह पिता जी को उठाकर अपने घर ले गए खाना खिलाया कुछ दिन रखने के बाद जब उन्हें एहसास हुआ कि हिन्दू बच्चे को घर पर रखने से बेवजह कभी ना कभी फसाद खड़ा हो सकता है उन्होंने अपने पड़ोसी गौरी को इस आश्वासन के बात सौंप दिया कि यशोवर्धन को कोई तकलीफ नही होगी गौरी ने आश्वासन दिया और यशोवर्धन को अपने साथ रख लिया गौरी तब के सबसे बड़े सेठ जो मिथिलांचल के ही थे,,,,,

 गोवर्धन जी के घर खाना बनाने का कार्य करती थी गौरी जब भी गोवर्धन सेठ के घर खाना बनाने जाती मेरे पिता को साथ ले जाती मेरे पिता उनके कार्यो में हाथ बटाते दिन एव देर रात तक अधिकतर समय दोनों का सेठ गोवर्धन के घर पर ही बिताता सेठ गोवर्धन मेरे पिता कि क्रियकलपाप को बहुत गम्भहिरता एव बारीकी से देखते और अक्सर बेशकीमती वस्तुओं को लापरवाही से जान बूझ कर ऐसे छोड़ देते जिससे कि मेरे पिता की नजर अवश्य पड़े,,,,,


मेरे पिता उंसे उठा कर सेठ जी या मालकिन त्रिशाला को सौंप देते इस प्रकार सेठ गोवर्धन और मालकिन त्रिशाला ने मेरे पिता को हर विधि से परखने कि कोशिश किया लालच आदि से चुकी सेठ गोवर्धन जी भी मिथिलांचल के ही थे बहुत संम्भवः था कि उनका भावनात्मक लगाव मेरे पिता से हो करीब एक डेढ़ वर्ष बाद सेठ गोवर्धन एव मालिकिन त्रिशाला ने गौरी से कहा कि वह यशोवर्धन को चौबीसों घण्टे के लिए उनके घर छोड़ दे उसके रहने भोजन आदि व्यवस्था यही रहेगी गौरी को कोई आपत्ति नही थी उंसे यही सुकून था कि उसके माध्यम से एक बेसहारा को सहारा मिल गया उसने सेठ गोवर्धन और त्रिशाला को मेरे पिता को सौंप दिया मेरे पिता पूरी ईमानदारी निष्ठा से मॉलिक मालिकिन कि सेवा दिन रात करते ।

दो तीन वर्ष बाद गौरी की मृत्य हो गयी जब मेरे पिता को गौरी के मरने की बात पता चली सेठ जी से अनुमति लेकर भागे भागे गौरी के शव के पास पहुंचे और उसकी अंत्येष्टि के लिए लोंगो से बहुत प्रार्थना किया बड़ी मुश्किल एक दो लोग साथ चलने को तैयार हुए गौरी अकेले ही रहती थी उसका पूरा परिवार प्लेग कि भेँट चढ़ चुका था किस्मत कि मारी को सेठ गोवर्धन ने ही सहारा दे रखा था मेरे पिता कि मदद के लिए सेठ जी ने अपने आदमियों को भेजा तब जाकर मेरे पिता ने अपनी मानस माँ कि अंत्येष्टि किया मुखाग्नि स्वंय दिया और विधि विधान से श्राद्ध कर्म इस दौरान गौरी से मेरे पिता के भावनात्मक लगाव कि वास्तविकता सेठ कि भावनाओं को उद्वेलित कर दिया सेठ जी पूरे परखी थे उन्होंने मेरे पिता जी से कहा यशोवर्धन गौरी कि अंत्येष्टि एव श्राद्ध में जो व्यय तुमने किया है उंसे तुम्हे भरपाई करनी होगी मेरे पिता सहर्ष बोले आदेश करें सेठ जी सेठ गोवर्धन बोले यशोवर्धन तुम्हे ब्रह्म बेला में उठ कर सिर्फ एक अंगौझा ओढ़ कर मेरे लिए गाय का दूध लाना होगा मेरे गुरु परमानन्द जी ने बताया है कि यदि कोई निश्चल व्यक्ति मेरे लिए गाय का दूध लाएगा और मैं उस दूध से पूजन आदि करूंगा तो व्यवसायिक बृद्धि बहुत होगी मेरे पिता जी सेठ के आदेश के पालन के लिए प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त कि बेला में उठते और सिर्फ एक अंगौझा नंगे बदन पर डाल कर नंगे पांव सेठ जी के लिए लगभग दो किलोमीटर दूर से शुद्ध श्यामा गाय दूध लाते मेरे पिता जी का दुर्भाग्य कहे या सौभगय उस समय भयंकर ठंठ और शीत लहर चल रही थी और बहुत से लोग शीत लहर के प्रकोप से कालकलवित हो गए थे!




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2 Comments

kashish

09-Sep-2023 07:34 AM

Nice

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madhura

06-Sep-2023 05:13 PM

Nice

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